Thursday, January 14, 2010

क्रोध ही करुणा लेकिन कब?


क्रोध एक अग्नि है
जिससे सिर्फ़ अपना
नास होता है, दूसरे
का नहीं।


याद रहे, क्रोध वह अग्नि है जिससे सिर्फ़ अपना नास होता है, दूसरे का नहीं। दूसरे का अगर आपके क्रोध के कारण जरा सा नास होता है तो याद रहे, आपकी शामत आई। वह उतने ज़ोर से आपसे बदला ले लेगा। जब भी आप कभी अपने क्रोध को दूसरों के ऊपर फेंकते तो सामने वाला भी कोई महावीर या बुद्ध नहीं है, सामने वाला भी आपके जैसा ही है। आपके किए वार का बहुत उचित जवाब दे देगा। अगर आपसे बड़ा है तो उसी समय दे देगा, अगर आपसे छोटा है तो मौके की तलाश करेगा, जब वह बड़ा हो जाएगा बदला ले लेगा। तो एक दूसरे को हम नाहक पीड़ा देते हैं ।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि दूसरों को भूल जाइए। इससे आप स्वयं को पीड़ा देते हैं। इस बात को स्वीकार करके लो कि मुझे क्रोध से सच में बाहर आना है और महत्वकांक्षा को छोड़ना है ।

क्रोध से तुम तब तक नहीं बच सकते, जब तक तुम अपनी महत्वकांक्षाओं को छोड़ोगे नहीं। यह तो ऐसे ही कि एक महिला आटा गूंद रही थी, अब आटा गूंदेगी तो हिलेगी, हाथ चलेंगे, मुठियों को आटे के ऊपर दबाएगी ही ……. तो उसकी सास उसको डांटने लगी कि ‘यह कैसे आटा गूंद रही है? हिल क्यों रही है ? हिले बगैर आटा गूंदो। ‘अब हिले बगैर आटा कैसे गूंदा जाए? आटा गूंदोगे तो हिलना होगा ही। ऐसे ही महत्वकांक्षाएं रखोगे, तो क्रोध होगा ही। क्रोध होगा तो दुखी होवोगे ।


हम लोग दुखी इसलिए नहीं होते कि हमारे जीवन में दुःख होता है। हम लोग दुखी इसलिए होते हैं कि हमें दूसरो के जीवन में सुख दिखता है और मन में लोभ उठता है कि यह सब मेरे पास क्यों नहीं है। हम अपने दुखों से दुखी नहीं है, हम दूसरो के सुख से दुखी हैं। क्योंकि दूसरे का सुख देखते ही मन में लालच उठता है कि ‘ये इसके पास है मेरे पास क्यों नहीं। यह इसको मिल गया, तो मुझे क्यों नहीं । हमने क्या पाप किए हैं कि हमें नहीं मिला, इसको मिल रहा है।’

क्रोध ऊर्जा है, क्रोध को करुणा में बदल सकते हैं। ऊर्जा वही है। वही क्रोध है पर वही क्रोध करुणा का रूप लेकर अमृत जैसा हो जाता है।’ हम अपने क्रोध को करुणा में कैसे बदलें ‘ इस विधि को मैंने बताया है, पर सबसे पहली बात तो यह आती है कि क्या तुम क्रोध से छूटना भी चाह रहे हो? तुम कहो कि मैं अपनी महत्वकांक्षा को भी बनाये रखूं और क्रोध से भी छूट जाऊँ तो यह नहीं हो सकता ।

दो बातें सिर्फ़ कहती हूँ कि आप अपनी खुशी को बाहर किसी विशेष स्थिति में सीमित न करें। और आप दूसरों को मत देखें। अगर ये दो काम कर सकें तो आप बहुत आनंद से रह सकेंगे। नहीं तो किसी नौकरी में रहो, किसी भी डिपार्टमेन्ट में रहो, अंतत: दुखी ही रहोगे। जब तक दूसरों को देखते रहोगे, जब तक महत्वकांक्षाओं में रहोगे, दुखी रहोगे।

जीवन का मजा यह है
कि आप अपनी खुशी
को बाहर किसी विशेष
स्थिति में सीमित न करें ।
और आप दूसरों
को मत देखो
जीवन का मजा यह है कि आप अपने कार्य करते है, आप अपने काम बहुत अच्छे ढंग से करते हैं, बुद्धि को लगाते हैं, शरीर से श्रम करते हैं, और श्रम करने में आनंद होता है, चीजों में आनंद नहीं होता। पदवियों में अपने आनंद को नहीं ढूँढते, कि ‘ यह पदवी होगी तो आनंद होगा’, ‘ यह पदवी नहीं होगी तो आनंद नहीं होगा ‘; ‘ जिस दिन मैं यह बन जाऊँ तभी आनंद मिलेगा ‘, ‘यह नहीं होगा तो सुख नहीं होगा ‘; अब अगर इस तरह की शर्तों के साथ तुम जीओगे तो दुखी ही रहोगे।

जय श्री राधा कृष्ण

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